भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
कारवां सराय / मुइसेर येनिया
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:20, 6 दिसम्बर 2015 का अवतरण
ओह यह धरती की प्रजाति
ढोल बजाए गए , दरवाज़े बन्द थे
कारवाँ सराय में
एक मोमबत्ती, ब्रेड का एक टुकड़ा, सूप की एक डिश
और जई की एक बोरी घोड़े के लिए
दरख़्तों की परछांईयों वाले आँगन में
पूरे तीन दिन
फिर एक कारवाँ तीन हजार ऊँटों का...
दीवार पर एक कुल्हाड़ा, युद्ध वाला कुल्हाड़ा
फ़ायरप्लेस की वजह से शरीर गर्म हैं
और चन्द्रमा बढ़ रहा है मानो निश्चित कर रहा है
एक नया दिवसकाल ।