भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

अब / अशोक शर्मा

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:07, 11 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अशोक शर्मा |संग्रह= }} {{KKCatGhazal}} <poem>अब ख...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

अब खुद से बात कर के घबरा जाते है हम!
दिल की बात दिल से न कह पाते है हम!!

तन्हाईयों के जंगल में खो कर अक्सर,
अपनी ही परछाई से डर जाते है हम !!

तेरे जैसा कोई नहीं हैं साथी या संगी मेरा,
जिंदगी की राहों में बस कसमसाते है हम !!

या खुदा यह इश्क का कैसा है इम्तिहा,
अकेले में जुदाई की ठोकरें खाते है हम !!

ऐ काश हमें पुकार लो इक बार भी तुम,
तेरी कसम सब छोड़ के चले आते है हम !!

'आशु' ख़ुशी में भी रोने का ही मन करता है,
तेरी याद में इस दिल को तडपाते है हम !!