भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
आग लगी पानी में / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:22, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
दिन भर उत्पात हैं शहर में
कौन टिके रानी के घर में
लाख के किले ऊँचे
आग लगी पानी में
जल रही मशालें हैं
संतों की बानी में
भोर-साँझ-रात सभी डूबे हैं डर में
ठाँव सभी जलते हैं
कोई भी छाँव नहीं
भाग कर बचे कैसे
परजा के पाँव नहीं
गली-चौक अगिया-बैताल की लहर में
झुलस रहे देवी के चौरे
कोठारे सब
क्या करें
हुए बूढ़े ताल के किनारे अब
शामिल हैं खेत-कुएँ राख के सफ़र में