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कैसे हो घास हरी / कुमार रवींद्र

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अनहोनी बात हुई
तड़प-तड़प ताल मरे
           कैसे हो घास हरी
 
पास बड़े बरगद के
रेतीली छाँव हुई
दुबली हो गयी नदी
तचे हुए पाँव हुई
 
मछली की लाश देख
मछुओं के जाल डरे
         कैसे हो घास हरी
 
खुशबू के जंगल से
गुज़रे दिन थके हुए
पीपल पर बैठे
सन्नाटे मुँह ढँके हुए
 
सोच रही दोपहरी
हाथों पर गाल धरे
         कैसे हो घास हरी