भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
ये गुलाबी खेल / कुमार रवींद्र
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 15:32, 13 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कुमार रवींद्र |अनुवादक= |संग्रह=च...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
पेट नंगे
पीठ पर गहरे छुरों के घाव
किस तरह का है भला यह गाँव
हर गली में है पड़ी
अनजान बूढ़ी लाश
भूख के अड्डे पुराने
एक गड्डी ताश
गले कपड़े
देह टूटी - हैं जुए के दाँव
किस तरह का है भला यह गाँव
हाथ में काँटे चुभे हैं
ये गुलाबी खेल
राजमहलों के पड़ोसी
हैं पुराने जेल
घर गुफाएँ
घूमते हैं जंगलों में पाँव
किस तरह का है भला यह गाँव