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उम्र भर अंधी सुरंगें / कुमार रवींद्र

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उम्र भर अंधी सुरंगें -
जंगलों में खो गये दिन
          और बूढ़े हो गये दिन
 
खो गये काली गुफा में
सगे-संबंधी झरोखे
नीलमणियों के इशारे
प्रेत-वन के हुए धोखे
 
कुछ दिनों तक
खिलखिलाकर
          बीहड़ों में सो गये दिन
 
सभी गहरे छोह पिछले
आँकड़ों से थके-हारे
रहीं दिनचर्याएँ सूनी
घनी छाया के किनारे
 
आँख के
धुँधले सरोवर
     आँसुओं से धो गये दिन