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बूढ़े हो गये पान / कुमार रवींद्र

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बूढ़े हो गये पान
छूते ही टूट गये पान पके
         बूढ़े हो गये पान
 
अनवासे सूरज के हाथों में
धरे रहे
भोले थे
दिन के विश्वासों से भरे रहे
 
होंठों से जुड़ते ही
टूट गये पान पके
         बूढ़े हो गये पान
 
बेल बने
चन्दन के खंभे पर चढ़े रहे
कुम्हलाये
पूजा की थाली में पड़े रहे
 
सीधे थे
मुड़ते ही टूट गये पान पके
            बूढ़े हो गये पान