भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

शहतूत / सबीर हका

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:58, 19 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=सबीर हका |अनुवादक=गीत चतुर्वेदी |...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

क्‍या आपने कभी शहतूत देखा है,
जहाँ गिरता है, उतनी ज़मीन पर
उसके लाल रस का धब्‍बा पड़ जाता है।
 
गिरने से ज़्यादा
पीड़ादायी कुछ नहीं।
 
मैंने कितने मज़दूरों को देखा है
इमारतों से गिरते हुए,
गिरकर शहतूत बन जाते हुए।

अँग्रेज़ी से अनुवाद -- गीत चतुर्वेदी