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जल गाथा / राग तेलंग

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जल गाथा-1

जहां पानी नहीं मिलेगा
वहां पानी के लिए प्यास जरुर मिलेगी

भले वहां आदमी न हो
कोई एक भटका हुआ परिंदा जरुर होगा,थकान से लबरेज़
या जमीन के अंदर और फैलने को बेक़रार एक जड़ की षिराएं
या वहां नीरव सन्नाटे को गहराती अजीबोगरीब आवाजें होंगी उन कीटों की
जो नमी के गायब हो जाने का सोग सस्वर मना रहे होंगे

ये तो पानी के लिए प्यास की नन्ही परिभाषाएं हैं

इसके उलट वहां आसमान में खाली पड़ा होगा
एक पानीदार बादल के टुकड़े के हिस्से का स्थान
जो हवा के संदेषों के लिए कर रहा होगा बेचैनी से इंतज़ार

दूर कहीं समुद्र के बीचों-बीच कोई एक मछुआरा
पानी के अक्षुण्ण बने रहने के लिए कर रहा होगा
कोई टोटका आस्मां की ओर
जिसका असर होना होगा कभी वहां
जहां पानी नहीं होगा
मगर पानी के लिए प्यास जरुर होगी

मैं जहां-जहां गया
वहां-वहां
पानी के लिए हर कंठ में अंतहीन प्यास की लौ देखी

‘जल ही जीवन है’
यह धरती पर उपजा मूल मंत्र है
पहला और आखिरी
जो जीवन यात्रा के आरंभ से लेकर अंत तक दोहराया जाता रहेगा

भले पानी हो न हो कभी कहीं पर
मगर पानी के लिए प्यास तो बची रहेगी ।



जल गाथा-2

पानी की बूंदों के भीतर
प्रकाश के रेशे
हर समय के लिए आकर ठहर जाते हैं

अंजुरि भर पानी की
चेहरे पर छपाक्
कई चमक एक साथ
भीतर समाविष्ट कराएगी

मुस्कराओ
पानी की महिमा समझकर
पानी में घुल जाने दो मुस्कान
पानी पर दीखते प्रतिबिंबों में
पानी ही प्राण भरता है

सबके भीतर पानी है
क्या आग, क्या बादल, क्या पत्थर
पानी की ध्वन्यात्मक भाषा
अलग-अलग कूट लिपियों में है

अग्नि हर रूप में अग्नि है
थोड़ी धूप भी, थोड़ी छांह भी
मगर वृक्ष झुलस जाएं इसके पहले
बादल बीच में आ जाते हैं

जीवन की उर्वरता अक्षुण्ण रहे
एक पत्थर की भी आकांक्षा होती है
भित्ति चित्रों में दर्ज है यह सत्य

अमरता की सारी प्रक्रिया आभासी है
जो अंत में कहां आकर ठहरती है
यह नामालूम है ।