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कल / राग तेलंग
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जब
कागज़ नहीं था
लिखा करते थे
अपनी आवाज़
पेड़ों के
पत्तों पर
आज
हर पन्ने में से
कटे जंगलों की
चीख सुनाई देती हैं .