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मैं जब भी लिखूंगी प्रेम ९ / शैलजा पाठक

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प्रेम सांवली लड़की के गुलाबी गाल
प्रेम गुलाबी आंख के आसमानी सवाल
प्रेम नरम होंठ पर खारा समय है
प्रेम अंगूठी में कसकता मेला है
प्रेम लम्बे बालों की रेशमी उलझन
प्रेम हथेली पर जड़ा चुंबन है

प्रेम ƒघड़ी की नोंक पर चुभता हुआ समय है
प्रेम तुम्हारा जाता हुआ लम्बा रास्ता
मेरे इंतजार की ढहती धंसती पगडंडी
प्रेम ख़त्म हुई बात पर बोलती तुम्हारी आंखें हैं
प्रेम 'तुम पागल हो' को मानती मेरी मुस्कराहट

प्रेम ना दिखने वाला काला भरा बादल
प्रेम भरी नदी की बेचैन लहरें
प्रेम तुम्हें पाना नहीं
प्रेम मुझे खोना नहीं
प्रेम अचानक खिड़की की सलाखों पर
उतर आई एक मीठी सी धुन है
मैं उन्हें छूती हूं वो बजते हैं

तुम्हारे लौट आने की तारीख का एक वादा है
मैंने मुट्ठी भींच ली है
प्रेम में एक मजबूत कंधा होता है
एक सारे बांध तोड़ बहती सी नदी होती है।