भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तुझमें भी है मुझमें भी / कमलेश द्विवेदी
Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:53, 25 दिसम्बर 2015 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=कमलेश द्विवेदी |अनुवादक= |संग्रह= }...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
फूलों से तो प्यार-मुहब्बत तुझमें भी है मुझमें भी.
पर थोड़ी खुशबू की चाहत तुझमें भी है मुझमें भी.
मिलना शायद ही हो पाए हम दोनों का आपस में,
फिर भी तो मिलने की हसरत तुझमें भी है मुझमें भी.
प्यार करेंगे पर रुसवाई हम न कभी होने देंगे,
कुछ भी हो पर इतनी शराफत तुझमें भी है मुझमें भी.
राह कठिन है इस जीवन की तू जाने मैं भी जानूँ
पर आगे बढ़ने की हिम्मत तुझमें भी है मुझमें भी.
सच कड़वा होता है अक्सर सबसे कहना ठीक नहीं,
यों तो सच कहने की आदत तुझमें भी है मुझमें भी.