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गिद्ध शाकाहारी नहीं होते / प्रदीप मिश्र

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गिद्ध शाकाहारी नहीं होते


आधी शताब्दी से ज़्यादा दिनों तक
आज़ाद रहने के बाद
मैं जिस जगह खड़ा हूँ
वहाँ की ज़मीन दलदल में बदल रही है
और आसमान गिद्धों के कब्जे में है

लोकतन्त्र के लोक को
सावधान की मुद्रा में खड़ा कर दिया गया है
हारमोनियम पर एक ग्लोबल शासिका के लिए लिखा गया
स्वागत गान बज रहा है

जब जयगान
तीन बार गा लिया जाएगा
तब बटेंगी मिठाइयाँ
मिठाइयाँ लेकर लोग
जब लौट रहे होंगे घर
झपट्टे मारेंगे गिद्ध

गिद्ध शाकाहारी नहीं होते
फिर क्या खायेंगे वे
शून्यकाल के इस प्रश्न पर
चीलों की संसद में बहस जारी है ।