भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
म्हनैं ठाह है : एक / रमेश भोजक ‘समीर’
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 20:34, 15 जनवरी 2016 का अवतरण
म्हनैं ठाह है
उतावळो है दुसासन
आपवाळां रो
चीर-हरण खातर
अर आपां
हाथ माथै हाथ धर्यां
बैठां हां
एक-दूजै सूं अळघा
दूर.. दूर... दूर....
घणा-घणा दूर
कोसां रै आंतरै माथै
फगत उडीकां हां-
किसन नैं!