भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

प्रेयसी / यात्री

Kavita Kosh से
Anupama Pathak (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:57, 16 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=यात्री |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatMaithiliRachn...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

ठाढ़ी भेली आबि तों तैखन कहाँसँ
हे हमर हीरा, हमर मोती, हमर हे सोन !
चिन्तनाक अथाह जलमे लगौलक डुबकी
- जखन ई मोन !
उठाओल चिरकाल सँ निहुँड़ल अपन ई माथ
कान्हपर जैखन देलह तों हाथ !
हे हृदय ! हे प्राण !

तों ने रहितह संगमे
तँ क' ने सकितहुँ हिमगिरिक अभियान !
रोहिणिया आमक सुपक्क गोपी जकाँ तों
करै छह सदिकाल गमगम सजनि हमरा हेतु
सकै छथि क की हमर ओ राहु आ, की केतु
जाबत तोंहि केंद्रमे छह राति-दिन साकांक्ष ?
चिर वियोगक आगिमे
तोरा जखन हम ठेलि बनलहुँ
परिब्राजक एसगरे ओहि बेर सखी चुपचाप
कते सहने रह तों परिताप ?
बहुत दिन पर ज्ञान एतबा भेल जे हम
केहेन निष्ठुर केहेन निर्मम, केहेन पाषाण !
हे हृदय ! हे प्राण !
अपन इच्छापर तोहर आशाक कैलियहु होम
तों बनलि रहली सदै सखि मोम !
जखन तोरा लग एलहुँ फेर,
क्षमा कैलह हमर सब अपराध
कनियो ने लगौैलह देर !
बाजि उठली सुमुखि तों बिहँसैंत -
की करबैक लै एहिना एलैऐ ह्वैत !
एक आँखि कनैत अछि जग एक आँखि हँसैत !
‌कोनो कारणसँ कदाचित रहै अछि जँ स्त्री-पुरुष दुइ ठाम
बढ़ल जाइत छइ सिनेह, ने ह्वैत छैक विराम !
ह्वैत एलैऐ सदै संयोग आ, कि वियोग
हमहूँ लेलहूँ भोगि, ता' भोगबाक छल जे भोग !
एकसँ दू भेलहुँ प्रियतम,
आब मिली-जुलि क' सकब
हमरा लोकनि घरबाहरक कल्याण
आउ, स्वागत
हे हृदय ! हे प्राण !

जै दियौ गअ
अहाँ की करबैक लै
एहिना एलैऐ ह्वैत ...
बाजि उठली सुमुखि तौं बिहुँसैत !

आइयो तँ छी समुद्रक कातमे हम ठाढ़
(हम एम्हर छी तों ओम्हर छ बीचमे व्यवधान -
एक डेढ़ हजार कोसक !
की करौ स्थलयान वा जलयान ?
कते व्यक्ति बजैत छथि जे
एही युद्धक बाद खूब हेतैक सस्ता विमान !)
हे हृदय, हे प्राण !