भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
सनेसो / गीता सामौर
Kavita Kosh से
Neeraj Daiya (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 21:27, 23 जनवरी 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=गीता सामौर |संग्रह= मंडाण / नीरज द...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
मां री कूख
आयोड़ो जीव
आ कद सोची ही
कै कन्या होवणो
भोत बडो अपराध है....।
पण आज
जद तथाकथित आधुनिक माईत
सोनाग्राफी करा’र
कन्या है
आ ठाह पड़्यां पछै
उणनैं मारण नै त्यार होयग्या
जणां उण जीव
दुनिया रा सगळा जीवां नैं
आपरो सनेसो दियो-
‘हे दुनियां रा जीवां
अर देवतावां!
इण कळजुग मांय
जे थे चावो हो
धरती पर आवणो
तो थांनै लेणी पड़सी सरण-
माछली / वराह
का फेर कच्छप रै
भेख मांय जलमण री।’
क्यूं कै मिनखा-देही मांय
देवतावां नैं जलम देवै
बिसी मां अबै कठै.....?