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अपने तड़पने की / मीर तक़ी 'मीर'

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अपने तड़पने की मैं तदबीर पहले कर लूँ
तब फ़िक्र मैं करूँगा ज़ख़्मों को भी रफू का

यह एैश के नहीं हैं याँ रंग और कुछ है
हर गुल है इस चमन में साग़र भरा लहू का

बुलबुल ग़ज़ल सराई, आगे हमारे मत कर
सब हमसे सीखते हैं, अंदाज़ गुफ़्तगू का