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सूर्य उवाच / बालकवि बैरागी

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आज मैंने सूर्य से बस ज़रा सा यूँ कहा

‘‘आपके साम्राज्य में इतना अँधेरा क्यूँ रहा ?’’

तमतमा कर वह दहाड़ा—‘‘मैं अकेला क्या करूँ ?

तुम निकम्मों के लिए मैं ही भला कब तक मरूँ ?

आकाश की आराधना के चक्करों में मत पड़ो

संग्राम यह घनघोर है, कुछ मैं लड़ूँ कुछ तुम लड़ो।’’