भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
दैरों में गुनाहों की तरह / संजय चतुर्वेद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:36, 21 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |संग्रह= }} कुछ तो एक जाल-सा हर सिम्त बिछा ...)
कुछ तो एक जाल-सा हर सिम्त बिछा रक्खा है
बाकी अत्तार के चेलों को लगा रक्खा है
कुछ समझ में नहीं आता कि ये चक्कर क्या है
क्या तमाशा ये अदीबों ने बना रक्खा है
यूँ सुख़न पेश है दैरों में गुनाहों की तरह
फिर ज़ियारत को अगर जाओ तो क्या रक्खा है