भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
रोजे महशर किताब पूछेगी / संजय चतुर्वेद
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:42, 21 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=संजय चतुर्वेद |संग्रह= }} इन्कलाबी कई वज़ीर हुए सब उसी ...)
इन्कलाबी कई वज़ीर हुए
सब उसी जुल्फ़ के असीर हुए
दिन की ताबिश में सर्वहारा थे
रात आई तो जहाँगीर हुए
रोजे महशर क़िताब पूछेगी
सिर्फ़ बूढ़े हुए कि पीर हुए ।