भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

सपने देखता समुद्र / रति सक्सेना

Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा) द्वारा परिवर्तित 18:51, 22 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रति सक्सेना }} समुद्र के सपनों में मछलियाँ नहीं<br> सीप घ...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

समुद्र के सपनों में मछलियाँ नहीं
सीप घौंघे, जलीय जीव जन्तु नहीं
किश्तियाँ और जहाज नहीं
जहाजों की मस्तूल नहीं
लहरों के उठना ,सिर पटकना नही
नदियाँ नहीं , उनकी मस्तियाँ नहीं
समुद्र सपने देखता है
जमीन का, उस पर चढे पहाडों का
उन सबका जिन्हें नदियाँ छोड
चलीं आईं थीं उस के पास
समुद्र के सपने में पानी नहीं होता