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कर्फ़्यू / इब्तिसाम बरकत

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हमारा शहर किसी क़ैदखाने की कोठरी है
बच्चों के चेहरे
गुलदान की जगह ले रहे हैं
खिड़की की चौखटों पर
और हम इन्तज़ार कर रहे हैं

अपनी बोरियत के
कारागार से निकलकर
हम शामिल होते हैं
थूकने की स्पर्धा में
जिसकी थूक
सबसे आगे जाएगी
वो उतना ज़्यादा स्वत्रंत

हम आसमान की तरफ़ देखते हैं
अधखुली आँखों में प्रश्न लिए

हम सूरज को
एक पतंग में बदलते हैं
और थामे रहते हैं एक किरण के सहारे
जब तक कि वो क्षितिज के भीतर
तार-तार नहीं हो जाती

और रोशनी के छिलके
ज़मीन पर गिरते हैं
विश्राम के वक़्त की कहानी का एक पन्ना
जो हमारी समझ से बाहर है

हमारे प्रश्न बचे रहते हैं
खमीर की तरह
हमारी छाती के भीतर
बढ़ते हुए ।