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दरख्तों पर पतझर / नचिकेता

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घुला हवा में कितना तेज जहर
यह पहचानो

किसने खिले गुलाबों से
उसकी निकहत छीनी
सपनीली आँखों से सपनों की दौलत छीनी
किसने लिखना दरख्तों पर पतझर
यह पहचानो

कौन हमारे अहसासों को
कुन्द बनाता है
खौल रहे जल से घावों की जलन मिटाता है
नोच रहा है कौन बया के पर
यह पहचानो

खेतों के दृग में कितना
आतंक समाया है
आनेवाले कल का चेहरा क्यों ठिसुआया है
किसकी नजर चढ़े गीतों के स्वर
यह पहचानो।