भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मामा-2 / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:07, 14 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=बाजै...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

लरपच मामा-बत्ती बाँस
देहोॅ पर नै जरियो माँस
बोली तै पर टनकोॅ टाँस
लौंगिया मिरचा नाँखी झाँस
बिलखै छौं कहिया सें बुतरू
लानी दौ करकोइयाँ-तुतरू ।