Last modified on 23 फ़रवरी 2008, at 01:26

कमरा / रघुवीर सहाय

Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 01:26, 23 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=रघुवीर सहाय }} हम दो जने थे जागते<br> ऐसा लगा जैसे कि यह कम...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम दो जने थे जागते
ऐसा लगा जैसे कि यह कमरा
रेलगाड़ी का एक डिब्बा हो
समय और अंधकार में यात्रा करता हुआ
चला जाता हो
और अकेला होता तो
लगता कि कोई प्रिय पात्र बीमार है
जिसके सिरहाने मैं बैठा जागता हूँ।