भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
तोरोॅ साथ रहेॅ जों हरदम / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय
Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:33, 25 मई 2016 का अवतरण
तोरोॅ साथ रहेॅ जों हरदम
आग हथेली परकोॅµशबनम ।
सचमुच प्रेम बिना तेॅ जीवन
बियाबान ही या मशान ही
मोती सें बनलोॅ मूरत के
आँसू के नद में भसान ही !
आह-हाय में बदली जाय छै
सावन केरोॅ झमझम-छमछम ।
कत्तोॅ साधोॅ तंत्रा-मंत्रा केॅ
सुख कुछुवो नै आवै वाला
आरो कुछुवो जों सुख छै तेॅ
तोरोॅ बिना तपावै वाला;
साथ मिलेॅ जों तोरोॅ, जरियो
लागै मन में मेघ, झमाझम ।
जे भी छोड़ेॅ साथ, छोड़ाबेॅ
तोहें साथ नै छोड़ियोॅ कभियो
सबके साथ कहैं लेॅ खाली
काटै लेॅ जेना कि दोभियो ।
सब के साथ निभैलैं सें की
सबके साथ की हेने गमगम ?