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प्रेम सही में सब में पावन / चन्द्रप्रकाश जगप्रिय

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प्रेम सही में सब में पावन
तपला जेठो पर ज्यों सावन ।

उमड़ै छै घन-घटा गगन पर
नीचें धरती के नस सिहरै
चन्दन वन सें हवा बही केॅ
जंगल-सागर-गिरि पर विहरै
ई हेनोॅ पंक्षी जे उड़लोॅ
सीधे संरगोॅ पर जाय ठहरै,
प्रेम रहेॅ जों सचमुच सच्चा
शूलो लगै बिछावन !
तपलोॅ जेठोॅ पर ज्यों सावन ।

प्रेम, शिशिर में धूप गुलाबी
नागफनी पर फूले रं ही
बीच भँवर में आवी जाय जों
आपने चली केॅ कूले रं ही
लगै गुदगुदी जीवन भर ही
प्रेम वहा; कोय भूले रं ही
शरदो रितु सें बढ़ी केॅ लागै
प्रेम पिया रोॅ भावन ।