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मनुष्यता का रिपोर्टर / कृष्ण कल्पित
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जब सारे कविगण
पुरस्कार प्राप्त कर रहे थे
पुरस्कार प्राप्त करके लौटा रहे थे
लौटाकर पुनः पुरस्कार प्राप्त कर रहे थे
तब टोली से बिछुड़ा हुआ कवि काम आया
एक गुमशुदा कवि
जो 1980 से ग़ायब था
वह आया
जब सर्वाधिक ज़रूरत थी एक कवि की
इतनी लम्बी सांस किसी ने नहीं खींची होगी
किसने लगाई होगी इतनी लम्बी घात
वह आया
ग़रीबी की तप्त कर्क रेखा से गुज़रते हुये
मेलों-ठेलों गंदी-बस्तियों गांव-शहर
और उजड़ती जा रही आबादियों की भयानक ख़बरों के साथ
दुश्मनों के तमाम दस्तावेज़ों के साथ
वह एक कवि
जो हर रोज़ एक पोएट्री फ़ाइल करता था
मनुष्यता का एक रिपोर्टर !