भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
एक और एक / शुभा
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 04:58, 29 मई 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=शुभा |अनुवादक= |संग्रह= }} {{KKCatKavita}} <Poem> ए...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
एक और एक
दो नहीं होते
एक और एक ग्यारह भी नहीं होते
क्योंकि एक नहीं है
एक के टुकड़े हैं
जिनसे एक भी नहीं बनता
इसे टूटना कहते हैं।