भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
मेरा शुमार कर लिया / देवी नांगरानी
Kavita Kosh से
Pratishtha (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 03:19, 26 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=देवी नांगरानी }} मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क...)
मेरा शुमार कर लिया नज़ारों में जाने क्यों
लाकर खड़ा किया है सितारों में जाने क्यों?
गुलशन में रहके ख़ार मिले मुझको इस क़दर
अब तो खिज़ां लगे है बहारों में जाने क्यों?
वैसे तो बात होती है उनसे मेरी सदा
पर आज कह रहे हैं इशारों में जाने क्यों?
सौ सौ को जो तरसते रहे उम्र भर सदा
होती है उनकी गिनती हज़ारों में जाने क्यों?
गै़रत वहां मिली है जहां ढूंढा अपनापन
देखी न पुख़्तगी ही सहारों में जाने क्यों।
वादे वही रहे हैं, वफाएँ वही रहीं
उठ-सा गया यक़ीन ही यारों में जाने क्यों?