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आँसू / संतोष कुमार चतुर्वेदी

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साथ रहते हैं
किसी के न पूछने वाले दिनों में भी
हाथ मे हाथ लिए रहते हैं
ढालान चलने वाले क्षणों में भी
बेजोड़ दोस्त है इसलिए
ढुलक ही आतें हैं पास

पृथ्वी की नदियों
खारे समुद्रों से
निचोड़ कर आकाशगंगा
वक़्त के किसी भी कोने
किसी भी ताखे पर
शिद्दत से
कुछ कह रहे होतें हैं
 
ज़िन्दगी के सियाह पन्ने पर
गालों से फुसफुसाकर
हो रही है कुछ
राज की बात
कहीं कोई सुन न ले