भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
भरथरी गायक / केशव तिवारी
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 13:28, 4 जून 2016 का अवतरण
जाने कहाँ-कहाँ से भटकते-भटकते
आ जाते हैं ये भरथरी गायक
काँधे पर अघारी
हाथ में चिकारा थामे
हमारे अच्छे दिनों की तरह ही ये
देर तक टिकते नहीं
पर जितनी देर भी रुकते हैं
झांक जाते हैं
आत्मा की गहराईयों तक
घुमंतू-फिरंतू ये
जब टेरते हैं चिकारे पर
रानी पिंगला का दुःख
सब काम छोड़
दीवारों की ओट से
चिपक जाती हैं स्त्रियां
यह वही समय होता है
जब आप सुन सकते हैं
समूची सृष्टि का विलाप