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जब शहर में चहल-पहल होगी / प्रेमरंजन अनिमेष
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जब शहर में चहल पहल होगी
कहीं गुमसुम कोई ग़ज़ल होगी
फिर भी होंठों को जोड़ होंठों से
कोई मुश्किल न इससे हल होगी
दो बड़ों को जो साथ ले आई
किसी बच्चे की इक चुहल होगी
अगले पल बाँहों में समाएगी
ज़िन्दगी रूठी पहले पल होगी
भीड़ में छोड़ ना ऐ तनहाई
तू नहीं तो भी दरअसल होगी
कोई गिरता है तो उठाने की
कोई कोशिश न आजकल होगी
दिल रहा भी तो दिल की अच्छाई
कल वही पहले बेदख़ल होगी
ख़ाली कर दो बिसात के ख़ाने
बादशाहों की शह बदल होगी
बेवफ़ाओं को भी वफ़ा देना
ये भी अपने में इक पहल होगी
मंज़िलें सबको कब मिलें 'अनिमेष'
साथ आ राह कुछ सहल होगी