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एक बारिश में उसके साथ भीगने का मन / प्रेमरंजन अनिमेष

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एक बारिश में उसके साथ भीगने का मन
उसकी बातों में कोई रात जागने का मन

उसके बालों को आगे ला के उसके कन्धों पर
अपने हाथों से हर धड़कन सहेजने का मन

महके फूलों को यूँ बिखरा के देह भर उसकी
अपने होंठों उसे हर फूल देखने का मन

हूँ मुहब्बत वहाँ जाऊँ जहाँ न जाए कोई
सिहरे तन में कहीं है मन को चूमने का मन

कबसे धरती को तकती हो गई है ख़ुद धरती
अब उठा कर उसे आकाश सौंपने का मन

पाँव रस्ते तो सारे नापते अकेले ही
थक के होता किसी के साथ लौटने का मन

किसी रिश्‍ते किसी नाते मिले कहाँ चाहत
प्यार रहकर ही कुछ उससे है माँगने का मन

अपने सोचे हुए कुछ नाम उसको देने का
नाम हर भूल कर उसको ही सोचने का मन

इसी मिट्टी में दब कर बीज सा उगूँ फिर से
इसी पानी में है सूरज सा डूबने का मन

जि़न्दगी साथ दे और साथी वो जिसे 'अनिमेष'
अपना सब कुछ हो अपने आप सौंपने का मन