भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
जीवन स्पन्दन / प्रेमरंजन अनिमेष
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:09, 6 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=प्रेमरंजन अनिमेष |अनुवादक= |संग्...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
अभी उस ओर
महसूस होता अभी इधर...
गर्भकुम्भ के भीतर
डग भर रहा नन्हा
चला रहा अपने पैर
शुरू हो चुका
जीवन के नए आगन्तुक का सफ़र
उत्सुक भविष्य
खोलना चाहता द्वार
दुनिया देखना चाहता
और दुनिया उसे
पगथलियों की यह थाप
आने वाले कल की दस्तक
जन्म सफल
हो जाता
जीवन धन्य
जननी का
सहते आगत सुख के
ये आघात
अहरह
प्रार्थना करती वह
जोड़े कर
ओ स्रष्टा ओ ईश्वर
हे शाश्वत हे नश्वर
इस नौनिहाल इस नए यात्री
हृदय के इस टुकड़े को
जीवन के पथ पर
कभी कहीं न लगे ठोकर...!