तेरे जाने पे भी आँखों में वो पल ज़िन्दा है / प्रेमरंजन अनिमेष
जगजीत सिंह के जाने के बाद
तेरे जाने पे भी आँखों में वो पल ज़िन्दा है
तेरी आवाज़ में हर एक ग़ज़ल ज़िन्दा है
कब फ़ना होते हैं जो लोग दिलों में जीते
ख़ाक बस ख़ाक में लौटी है असल ज़िन्दा है
आँखें हैं जिनसे कि बच्चे की किलक झाँके है
और हँसी में वही मासूम-सा कल ज़िन्दा है
वक़्त के आगे क्या औक़ात किसी पत्थर की
ये मुहब्बत ही है जो ताजमहल ज़िन्दा है
हों भरी पलकें रहे दिल में हरा कुछ हरदम
इनके चलते ही तो ख़्वाबों की फ़सल ज़िन्दा है
उम्र कटने को तो कुछ ऐसे भी कट जाएगी
दफ़न हम ख़ुद में कहीं अपना बदल ज़िन्दा है
ज़िन्दगी मौत से हारी न कभी हारेगी
उसकी ये दरियादिली है कि अज़ल ज़िन्दा है
एक बस तेरी कमी है चले आओ 'अनिमेष'
देख तो कितनी यहाँ चहल-पहल जिन्दा है