बाज़ार में रोना / प्रेमरंजन अनिमेष
एक बूढ़ा आदमी
रो रहा है
बीच बाज़ार में
क्या उसका
कुछ खो गया ?
कुछ ले न सका
या जो लिया
काम का नहीं निकला
धोखा हुआ
छला गया
ठगा गया
लुटा...?
बाज़ार में तो
ऐसा होता है
या बाज़ार वाली नहीं
बात कोई और
कोई अपना दुख
कोई गुज़र गया क्या
छोड़ कर चला गया ?
इस उम्र में
तो होगा यही
जाते देखेगा औरों को
या ख़ुद जाएगा
किसी न किसी दिन तो ऐसा होगा
तय है यही होगा
मगर बाज़ार और उसके शोर
और भीड़ में
आदमी भूला रहता
हालाँकि बाज़ार कोई मेला नहीं
न आदमी का बचपना
अगर जान पाए कोई
तो जानेगा
बाज़ार में छूटे किसी बच्चे को
मिलाकर वह आया है
उसके घर-परिवार से
रो रहा है
उस बच्चे का
चेहरा याद कर
कुछ इस बात पर
कि कभी पहले
कोई उसे मिला होता ऐसा
तो आज वह कुछ और होता
कहीं और
नहीं बाज़ार का
एक व्यवसायी
जिसके पास
कोई नहीं
रोने के लिए भी
कुछ भी नहीं
न कोई
आदमी
या जगह
और इस बाज़ार में इसका
चलन न क़ायदा...