भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
वह / एकराम अली
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 08:01, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=एकराम अली |अनुवादक=उत्पल बैनर्जी...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
बहुत, बहुत दूर रहता है वह
तारे का उजास बिखरा रहता है
तारे के आसपास
और इसलिए
वह नहीं दिखाई देता
केवल देह का अंगार
दूर शून्य से
छिटक-छिटक कर आता रहता है!
मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी