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टूटा चाँद / दिनेश दास

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आकाश में करुण टूटा हुआ चाँद है
आसमान में धुएँ के अवकाश में है मरा हुआ चाँद:
ज़र्द चाँद के इस धूसर उजाले में
सभी कुछ कैसा टूटा-टूटा-सा लगता है
लगता है टूट गई हैं ऊँची-ऊँची छतें
टूट गए हैं स्मारक, गिरजाघर के शिखर
यह साबुत पृथ्वी टूट-फूट गई है
नया कोहरा उड़ता है:

पीले चाँद के धूसर उजाले में
लगता है
कोहरा, कोहरा नहीं
मानो राख का चूरा उड़ता हो,
सब ओर राख ही राख --
जैसे मुँह खुल गया हो विसुवियस का
और राख से ढँका जा रहा है पम्पाई!

निश्चेष्ट निर्जन रात:
ओस से भीगी हैं तारों की आँखें
और उसके नीचे
ईडन गार्डन से बह आती है
शिशु-चमगादड़ की दबी हुई रुलाई,
नगर-दुर्ग के मैदान के कोने में
ढेर सारे झींगुरों की झंकार है,
और ग्रैण्ड होटल की बाज़ू में
कराह रहा है एक अधमरा कुत्ता।

इस टूटे हुए उजाले और
कोहरे की राख और करुण रुलाई में
लगता है समूची पृथ्वी
अभी-अभी मर गए पम्पाई शहर का मलबा है,
और सुदूर निस्संग एक प्रेत की तरह
उसके बीचोंबीच खड़ा हुआ हूँ मैं!

मूल बँगला से अनुवाद : उत्पल बैनर्जी