भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

मन-रंग–1 / अपर्णा अनेकवर्णा

Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 11:24, 8 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अपर्णा अनेकवर्णा |अनुवादक= |संग्र...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

मेरे मन का रंग है
गाढ़ा ठुडुक लाल..

वो प्रेम भी
उसी रंग में करता है..
और घृणा भी...
हिंसक होने की हद तक..

दुखता है तो
इतना गाढ़ा हो उठता है
कि जामनी हो जाता है...
कत्थई का अन्त..
बैगनी की शुरूआत..

बस कभी-कभी..
माँ.. शिशु.. प्रकृति.. इष्ट..
के आस-पास..
सफ़ेद होने लगता है ...

हो नहीं पाता..
मद्धिम गुलाबी के..
अलग-अलग वर्ण लिए
रह जाता है..

उस सफ़ेद का
बहुत इन्तज़ार है