भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए

नशाखोरी के फोॅल / अमरेन्द्र

Kavita Kosh से
Rahul Shivay (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 10:03, 10 जून 2016 का अवतरण ('{{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=अमरेन्द्र |अनुवादक= |संग्रह=बुतरु...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)
यहाँ जाएँ: भ्रमण, खोज

जे पीयै छै ताड़ी
ओकरोॅ भाँसतै नाड़ी ।
जे गाँजा पीयै छै
थोड़े दिन जीयै छै ।
जे पीयै छै दारू
ऊ पक्का घरजारू ।
जे पीयै छै हुक्का
ओकरोॅ जिनगी फुक्का
बीड़ी-सिगरेट पीतै
जम दरबाजा जैतै ।
पर पानी जे पीयै
सौ-सौ साल ऊ जीयै ।