बर्वरीक केरोॅ वध / सुरेन्द्र प्रसाद यादव
कुरुक्षेत्रा रोॅ विशाल मैदान छेलै
दोनोॅ दलोॅ रोॅ योद्धा छेलै ।
अलग-अलग शस्त्रा सेॅ सुसज्जित छेलै
पूरा अस्त्रा-शस्त्रा सेॅ सुसज्जित छेलै ।
दोनोॅ दल आमना-सामना खड़ा छेलै
आवेॅ पल भरोॅ रोॅ इन्तजारोॅ मेॅ डटलोॅ छेलै ।
दोनोॅ तरफोॅ रोॅ बाकुड़ा लड़ाके तत्पर छेलै
लड़ै वास्तें बांह खिललोॅ छेलै ।
अचानक धर्मराज आपनोॅ कवच उतारी देलकै
अस्त्रा-शस्त्रा रथोॅ पर रखी केॅ चली देलकै ।
पैदल कौरव सेना रोॅ तरफ चली देलकै
भीष्म जन्नें खड़ा छेलै, हुनी डेग बढ़ाय देलकै ।
है दृश्य देखी केॅ चारोॅ भाय आश्चर्य करलकै
चारोॅ रथोॅ सेॅ उतरी केॅ हुनकोॅ पीछु चली देलकै ।
कृष्ण है सब्भे रोॅ पीछू-पीछू चली पड़लै
चारोॅ भाय चिंतित होय केॅ भगवान सेॅ पूछलकै ।
युधिष्ठिर आपनोॅ धूनोॅ मेॅ चललोॅ जाय छेलै
पूछला पर कुछ जवाब नेॅ दैनेॅ छेलै ।
कृष्ण नेॅ सब्भेॅ केॅ शांति रहै रोॅ आदेश देनेॅ छेलै
युधिष्ठिर धर्म रोॅ पालन करै लेॅ चली देनेॅ छेलै ।
कौरव दलोॅ मेॅ हलचल मची गेलोॅ छेलै
शत्राुदल बोलै लागलै, युधिष्ठिर डरी गेलै ।
शत्राुपक्ष शंका करै मेॅ देरी नै करलकै
भीष्म पितामह केॅ फोड़ै रोॅ काम करलकै ।
युधिष्ठिर सीधे, भीष्म पितामह रोॅ पास गेलै
हाथ जोड़ी केॅ प्रणाम करलकै, समीप गेलै ।
आपनें रोॅ साथ युद्ध करना विवशता छै
आपनें आशीर्वाद दियै युद्ध वास्तें लाचारी छै ।
भीष्म बोललैµ भारत श्रेष्ठ ! आबी केॅ तोहें
युद्ध रोॅ अनुमति मांगल्हेॅ, अवश्य जीतवे तोहें ।
है समय तोहें यहाँ नै ऐतिहोॅ
पराजय रोॅ भारी शाप तोरा देतिहोॅ ।
जा पार्थ ! समर क्षेत्रोॅ मेॅ लड़ोॅ
हमरा सेॅ वरदान मांगी लेल्हेॅ, आवेॅ लड़ोॅ ।
भीष्म बोललैµ मनुष्य धन रोॅ दास होय छै
धन केकरोॅ दास नै होय छै ।
हौ बोललै ! कौरव धनोॅ सेॅ बसोॅ मेॅ रखनें छै
लाचार होय केॅ हिनका तरफोॅ सेॅ युद्ध करै लेॅ लागै छै ।
आपनें अजेय छियै, आपनें केॅ कैसें जीतवै
दोसरोॅ बार आबी केॅ पूछियोॅ तबेॅ बताय देवै ।
धर्मराज गुरु द्रोणाचार्य रोॅ पास गेलोॅ छेलै
युद्ध रोॅ अनुमति माँगै लेॅ गेलोॅ छेलै ।
गुरु बोललैµ शस्त्रा रहतेॅ हमरा परास्त नै करै पारतै
अप्रिय सामाचार सुनला पर शस्त्रा रखला पर मारेॅ पारतै ।
हौ समय मेॅ ध्यानस्थ होय जैवै
हौ वक्त हमरा मारे पारवै ।
धर्मराज कृपाचार्य रोॅ पास गेलै
आशीर्वाद लै वास्तें पैर छुऐॅ लेॅ गेलै ।
दारुण बात पूछतै, अचेत होय गेलोॅ छेलै
कृपाचार्य हुनका मतलब समझाय देनें छेलै ।
हे ! राजन केकरो द्वारा हमरा नै मारै पारतै
तोरा लेली विजय रोॅ विनती हमेशा करवै ।
नित्य प्रातः भगवान सेॅ प्रार्थना करवै
तोरोॅ विजय मेॅ बाधक नै बनवै ।
युधिष्ठिर नेॅ शल्य मामा केॅ प्रणाम करलकै
शल्य नेॅ युधिष्ठिर केॅ आशीष देलकै ।
पितामह नांखी शल्य नेॅ आश्वासन देलकै
निष्ठा रोॅ वचन सेॅ कर्ण केॅ हतोत्साह करलकै ।
घृणित बातोॅ सेॅ हुनकोॅ ध्यान टूटलै
होकरोॅ युद्धभूमि मेॅ मनोबल घटलै ।
गुरुजनोॅ आरोॅ बड़ोॅ केॅ प्रणाम करी केॅ लौटलै
विजय रोॅ आर्शीवाद लै केॅ खेमा लोटलै ।
युधिष्ठिर रोॅ विनम्रता-शालीनता सेॅ
चारोॅ भाय अवगत होलै, होकरोॅ कुशलता सेॅ ।
धर्मराज रोॅ विनम्रता नेॅ जगह बनैलकै
भीष्म, द्रोण, कृपाचार्य रोॅ हृदय मेॅ पैठ जमैलकै ।
धर्मराज, शालीनता, सहिष्णुता पावी केॅ
विजय रोॅ श्रेय मिललै पाण्डव पक्षोॅ केॅ ।