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सत्यवती रोॅ शोक / सुरेन्द्र प्रसाद यादव

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संकल्प करै छै, वस्तु हमरा प्राप्त होय जाय
बल पौरुष युक्ति सेॅ प्राप्त होय जाय ।

कल्पना रोॅ पूर्ति सेॅ जाग्रत्यकालीन स्वप्नकालीन जीवन व्यतीत होय छै
कल्पना अनुरूप सफलता मिली जावेॅ पारै छै ।

मनोवांछित वस्तु नै मिलला पर माथोॅ पटकी केॅ काने लागै छै
भगवानोॅ केॅ भूली केॅ आपनोॅ अहंकारोॅ सेॅ स्वयं पैदा होय छै ।

आपनोॅ धारणा रोॅ अनुरूप सृष्टि रोॅ निर्माण करै लागै छै
सारा सृष्टि रोॅ व्यवस्थापक गति विधि रोॅ निरीक्षण करै छै ।

के आदमी कै स्थानोॅ पर पात्रोॅ मेॅ अन्न ग्रहण करै वाला छै
समय स्थान, अन्य व्यक्ति पात्रा भाग्य जोड़ी केॅ निश्चित करै छै ।

कल्पना सेॅ अमूल्य समय रोॅ नष्ट करे रोॅ बहाना छेकै
भगवान भजन मेॅ स्वरूपाकार वृत्ति मेॅ स्थिर रहै रोॅ छेकै ।

अज्ञानी ! दुखी सुखी रोवै हँसै मेॅ समय बिताय छै
तत्वज्ञानी ! हँसै रोवै केॅ निमित्त स्थिर भाव रहै छै ।

विवाह करी केॅ कत्तेॅ पुत्रा हुवेॅ पारै छौ, शान्तनु मनों मेॅ सोचै छै
मतरकि भीष्म नांखी बलिष्ठ दीर्घ जीवी नै हुवै पारै छै ।

बीहा होय गेलै अज्ञानी प्राणी घबराय गेलै
जेकरोॅ नाम सुनी केॅ कल्पना करी केॅ मृत्यु समय सेॅ आबी गेलै ।

बड़ोॅ साम्राज्य सुन्दर-सुन्दर बलिष्ठ पूत छोड़ी केॅ चललोॅ गेलै
रूप-लावण्यमयी पत्नी केॅ छोड़ी केॅ सदा वास्तें चललोॅ गेलै ।

सत्यवती पर मोहित होय केॅ
बलिष्ठ ज्येष्ठ पुत्रा केॅ राज्य सेॅ वंचित करी केॅ ।

सत्यवती सेॅ दू पुत्रा हुनका होलै
चित्रांगदा, विचित्रावीर्य होलोॅ छेलै ।

शान्तनु जबेॅ अनुमति सेॅ भीष्म नेॅ तर्जि देने छेलै
चित्रांगद केॅ राजसिंहासन देलोॅ गेलै ।

सम्राट रोॅ पुत्रा बड़ी उत्साही युवक छेलै
हिनका आपनोॅ भुजा पर अभिमान छेलै ।

पृथ्वी पर सब्भै राजा केॅ हराय देनें छेलै
सब्भे राजा केॅ कोय खेतोॅ रोॅ मूली नै समझै छेलै ।

धरा पर सब्भै केॅ तुच्छ दृष्टि सें देखै छेलै
हकीकत मेॅ परमात्मा रोॅ अतिरिक्त कोय नै छै ।

अहंकार रोॅ वशीभूत होय केॅ परमात्मा केॅ तुच्छ समझै छै
विजय गर्वित चित्रांगद एंेठी केॅ इतराय केॅ चलै छै ।

देवता, दैत्य, मानव सब्भै केॅ हराय देने छै
सृष्टि रोॅ क्षेत्रा विशाल अजूबा पावै छै ।

मानव है सृष्टि मेॅ एक कीड़े-मकौड़े के समान छै
एक ब्रह्माण्ड मेॅ सूर्य, एक कण के समान छै ।

एक सूर्य मेॅ, एक पृथ्वी एक कण के समान छै
पृथ्वी पर एक चेतना वीर बहादुर होय जाय ।

आपनोॅ स्वरूपोॅ केरोॅ सत्ता पर क्षणभंगुर जीवन मेॅ बड़ोॅ बनी जाय
अंतिम में चित्रांगद केॅ जोड़है धराधाम पर मिली गेलै ।

होकरोॅ नाम चित्रांगद छेलै हौ गन्धर्व छेलै, मनुष्य चित्रांगद वली छेलै
गंधर्व चित्रांगद महाबली छैलै, दोनोॅ रोॅ बीचोॅ मेॅ युद्ध होलोॅ छेलै ।

बेतुका आरोॅ महत्वहीन युद्ध छेलै
नामोॅ लै केॅ युद्धोॅ रोॅ बहाना होलोॅ छेलै ।

मनुष्य चित्रांगद नेॅ, गंधर्व चित्रांगद सेॅ कहलकै
हमरोॅ नाम तोरोॅ परिजनै कैन्हें राखलकै ।

कुरुक्षेत्रा रोॅ सरस्वती नदी रोॅ तट पर घनघोर युद्ध होलै
दोनोॅ वीर तीन बरस तक लड़तै रहलोॅ छेलै ।

मनुष्य चित्रांगद युद्धोॅ मेॅ हारी गेलै
गंधर्व चित्रांगद युद्धोॅ मेॅ जीती गेलै ।

आपनोॅ केरोॅ सामना मेॅ दोसरा केॅ तुच्छ समझै छेलै
आय होकरोॅ शरीर खूनोॅ सेॅ लट-सट होय गेलोॅ छेलै ।

जमीनोॅ मेॅ मृत होय केॅ गिरलोॅ पड़लोॅ छेलै
कौआ, गिद्ध आपनोॅ भूख मिटाय रहलोॅ छेलै ।

अहंम करना बड़ा खराब होय छै
भगवान रोॅ अनूठा भोजन होय छै ।

चित्रांगद युद्ध मेॅ मरी गेलै
सत्यवती केॅ छटपटी लागी गेलै ।

विचित्रावीर्य रोॅ उमर आभी कच्चा छेलै
सत्यवती रोॅ आदेश सेॅ हिनका गद्दी देनें छेलै ।

भीष्म नेॅ बड़ी जतन सेॅ संभालनें छेलै
प्रजा केॅ कोय तरह रोॅ कष्ट नै होलै देनें छेलै ।

सत्यवती केॅ मनोॅ रोॅ प्रबल इच्छा जागलेॅ छेलै
बेटा रोॅ बीहा होय केॅ बहु जल्दी आबी जाय लेॅ चाहै छेलै ।

बच्चा होय केॅ चारोॅ दिशा मेॅ किलकारी मारै
हमरोॅ मन पूरा होवै, घरोॅ सुहावन मनोॅ पूरा करै ।

चक्रवती पति चित्रांगद जैन्होॅ पुत्रा मरी गेलै
सत्यवती के मनोॅ रोॅ आशा, विचित्रावीर्य पर अटकी गेलै ।

सत्यवती नेॅ भीष्म सेॅ कहलकै विचित्रावीर्य रोॅ बीहा करी दोहोॅ
विचित्रा वीर्य रोॅ बीहा जल्दी सेॅ जल्दी करी केॅ लानी दोहोॅ ।

पिता केॅ प्रसन्न करै लेली, साम्राज्य त्यागी देलकै
आजीवन ब्रह्मचारी जीवन बिताय लेॅ व्रत लेलकै ।

खुद बीहा नै करलकै, माता रोॅ आज्ञा सेॅ भाय रोॅ करलकै
काशी नरेश रोॅ तीनोॅ कन्या रोॅ रथोॅ पर बैठाय केॅ लानलकै ।

कन्या रोॅ स्वयंवर मेॅ कत्तेॅ नेॅ देशोॅ रोॅ राजा ऐलोॅ छेलै
सब्भे राजा रोॅ वंशोॅ गुणोॅ रोॅ वर्णन होय रहलोॅ छेलै ।

भीष्म केॅ स्वयंवर मेॅ देखी केॅ सब्भे अचरज करे छेलै
पहलै जोशोॅ मेॅ आभी केॅ प्रतिज्ञा करनें छेलै ।

आबेॅ जोश ठंडा पड़ी गेलै बीहा करे लेॅ चाहै छै
आपनोॅ प्रतिज्ञा तोड़ी केॅ केना केॅ मुँह देखाय छै ।

पापी केॅ सब जगह पापीए देखाय पड़ै छै
कलुषित राजा भीष्मोॅ पर कलुषित आरोप लगाय छै ।

भीष्म नेॅ आपनोॅ बदनामी रोॅ ख्याल ने करलकै
विमाता रोॅ आज्ञा रोॅ पालन बढ़ी-चढ़ी केॅ करलकै ।

कुछ राजा केॅ शत प्रतिशत विश्वास छेलै
भाय रोॅ वास्ते है, कार्य करै लेॅ ऐलोॅ छेलै ।

सूर्य, चन्द्रमा आपनोॅ नियत गति केॅ त्यागे पारै छै
भीष्म आपनोॅ भीष्म प्रतीज्ञा नै तोड़ै पारै छै ।

राजा सब्भे रोॅ बातचीत सुनी केॅ भीम हँसलै
सब्भै राजा बल केरोॅ गर्वो सेॅ हँसै छेलै ।

भीष्म नेॅ सब्भेॅ केॅ मजा चखाय केॅ छोड़लकै
तीनोॅ कन्या केॅ रथ पर बैठाय केॅ लानलकै ।

काशी नरेश बड़ी निर्भयता सेॅ सब्भे केॅ कहलकै
शास्त्रोॅ मेॅ विवाह ब्रह्मा आर्ष दैव रोॅ उल्लेख करलकै ।

यहाँ सब्भेॅ वीर ही वीर इकट्ठा होलेॅ छेलै
कन्या रोॅ अधिकारी वीर सतपात्रा ही होलै ।

भीष्म नेॅ बलपूर्वक कन्या केॅ रथ पर बैठैलकै
हिनकोॅ कोय राजा मुकाबला नै करै पारलकै ।

कत्तेॅ लोग ठोर दाँतोॅ तर दबाय केॅ ताल ठोकै छेलै
कुछु लोग युद्ध करै लेली शास्त्रास्त्रा सेॅ दिशा झनझनाय छेलै ।

घोड़ा, हाथी रथोॅ पर सवार होय केॅ भीष्म केॅ घेरै छेलै
हौ समय भीष्म सें अपमानित होला सेॅ भौंह टेढ़ोॅ होय गेलै ।

सब्भै भीष्म सेॅ युद्ध करै लेॅ तत्पर होय गेलोॅ छेलै
भीष्म रोॅ सामना मेॅ कोय नै टिकै पारलै, सब परास्त होलै ।

सब्भेॅ केॅ पीछू ललकारतै हुए साल्व ऐलोॅ छेलै
युद्ध मेॅ भीष्म न पकड़ी लेलकै वध नै करनें छेलै ।

साल्व केॅ भीष्म नेॅ छोड़ी देलकै
साल्व आपनोॅ नगर चली देलकै ।

तीनोॅ कन्या केॅ लै केॅ वन, नदी, पहाड़ लाँघने ऐलै
तीनोॅ कन्या रोॅ प्रति छोटी बहन, पुत्राी, पुत्रावधू रोॅ भाव छेलै ।

तीनोॅ कन्या केॅ हस्तिनापुर मेॅ विचित्रा वीर्य केॅ सौंपी देलकै
सत्यवती माता केॅ सलाह लै केॅ विवाह रोॅ उद्योग करलकै ।

बड़ी लड़की अम्बा, मंझली अम्बिका तेसरोॅ अम्बालिका छेलै
अम्बा नेॅ दिलोॅ रोॅ बात भीष्म केॅ कहनें छेलै ।

धर्मज्ञ समझी केॅ हिनका कहने छेलै
अम्बा मने-मन शाल्व केॅ पति चुनने छेलै ।

धर्मात्मा वहेॅ हमरोॅ पति होय वाला छेलै
हमरोॅ पिता रोॅ विचार यहेॅ छेलै ।

वेदज्ञ ब्राह्मण केॅ बोलाय केॅ सलाह लेलकै
होकरोॅ इच्छा के दमन नै करलकै ।

अम्बा साल्व के पास चली देलकै
मतरकि साल्व नेॅ होकरा प्राश्रय नै देलकै ।

हम्में आपनें केॅ पति रूपोॅ मेॅ वरण करनें छियै
है बातोॅ रोॅ आपनें स्वीकृति देनें छेलियै ।

सुन्दरी ! तोहें दोसरोॅ रेॅ घर चली गेलोॅ छेलोॅ
हाथ पकड़ी केॅ रथोॅ पर बैठनें छेल्हौं ।

युद्ध मेॅ तोरा जीती केॅ लै गेलोॅ छेल्हौं
तत्काल ! तोहें होकरोॅ विरोध नै करनैं छेल्हौं ।

आवेॅ हम्में तोरा पत्नी नै बनाय पारै छिहौं
भीष्म रोॅ साथ रह लै तत्पर होलौं ।

भीष्म नेॅ बलपूर्वक साथ लै गेलोॅ छेलै
हुनकोॅ प्रति हमरा हृदय नेॅ अनुराग नै होलोॅ छेलै ।

हमरा दूषित दृष्टि सेॅ अवलोकन नै करनें छेलै
आपनोॅ रोॅ प्रति प्रेम उद्वेलित होय रहलोॅ छेलै ।

आपने केॅ छोड़ी केॅ दोसरा सेॅ विवाह करै लेॅ नै चाहै छियै
आपनें सेॅ प्रणय आरोॅ प्रसादोॅ रोॅ इच्छुक छियै ।

साल्व एक्कोॅ बात नै सुनै लेॅ तैयार नै छेलै
अम्बा केॅ समझैलकै सारा दोष भीष्म रोॅ छेलै ।

आवेॅ ब्रह्मचारी बनी केॅ कठिन तप करवै
आश्रम मेॅ रहै रोॅ अनुमति देवै ।

अम्बा ऋषि सेॅ बातचीत करी रहलोॅ छेलै
यही बीचोॅ में होत्रा ब्राह्मण ऋषि ऐलोॅ छेलै ।

हौ ऋषि अम्बा के रिश्ता मेॅ नाना लागै छेलै
अम्बा केॅ धीरज रखै रोॅ जिम्मेदारी लेलेॅ छेलै ।

तोंय भृगुवंशी परशुराम रोॅ शरण चली दोहोॅ
हमरोॅ नाम बतैहियोॅ सहायता रोॅ प्रार्थना करिहोॅ ।

अचानक परशुराम रोॅ शिष्य अकृतव्रण आबी गेलै
अकृतव्रण नेॅ बतैलकै, भीष्म रोॅ दोष बतैनें छेलै ।

अम्बा नेॅ भीष्म सेॅ बदला लै रोॅ मन बनैंने छेलै
परशुराम पधारलै, ऋषि सब्भे स्वागत करनें छेलै ।

होत्रावाहन नेॅ अम्बा केॅ कथा सुनावै लागलै
अम्बा बड़ी करुण स्वरोॅ मेॅ प्रार्थना करनें छेलै ।

भीष्म बड़ा सज्जन आरोॅ पूजनीय छै
बात मानतै घबराबोॅ नै, मतर अम्बा बड़ी हठी छै ।

अकृतव्रण नेॅ परशुरामोॅ सेॅ आग्रह करलकै
आग्रह नै मानला पर युद्ध करी केॅ मारै लेॅ कहलकै ।

परशुराम केॅ क्षत्रियोॅ केॅ नाश करै रोॅ प्रतिज्ञा याद ऐलै
परशुराम नेॅ भीष्म केॅ राजी करै रोॅ चेष्टा करनें छेलै ।

काशी राज रोॅ कन्या केॅ साथ लै केॅ गेलोॅ छेलै
बात नेॅ मानला पर जान सेॅ मारै लेॅ तैयार छेलै ।

परशुराम नदी रोॅ किनारा पर रहलै भीष्म केॅ सूचना देनें छेलै
भीष्म नेॅ ब्राह्मण पुरोहित रोॅ स्वागत करनें छेलै ।

परशुराम नेॅ आतिथ्य भीष्म रोॅ स्वीकार करनें छेलै
कुशल मंगल भीष्म सेॅ पूछनें छेलै ।

तोहें अम्बा केॅ हारी केॅ लानै रोॅ की तुक छेलै
है साल्व पर पहिलैं सेॅ आसक्त छेलै ।

निष्काम होय केॅ हरै रोॅ की कारण छेलै
आवेॅ है कन्या केॅ समाज रोॅ धर्मात्मा नै चाहै छै ।

हिनका तोहें ग्रहण करोॅ, नै तेॅ जीवन अपूर्ण छै
परशुराम रोॅ ऐन्होॅ ध्वनि निकललै ।

भीष्म केॅ अम्बा रोॅ साथ शादी रोॅ बात कहलकै
दोनोॅ कन्या विचित्रावीर्य केॅ सौपी देलकै ।

सत्यवती विवाह करै के उद्योग करलकै
साल्व केॅ पति माननें छेलै, होकरा पास गेलै ।

हमरोॅ भाय रोॅ विवाह होय गेलै
हम्में धर्म रोॅ उल्लंघन नै करै पारै छियै ।

भय, दया, लोभ, कर्म, धर्म नै छोड़ै पारै छियै
परशुराम कहै छै तोरा हमरोॅ आज्ञा मानै लेॅ पड़तौं ।

नै तेॅ मृत्यु, मंत्राी, अनुचरोॅ रोॅ साथ मारभौं
भीष्म नेॅ अनुनय-विनय करलकै ।

भय सेॅ धर्म नै छोड़ै रोॅ व्रत लेलकै
गुरुजनोॅ ! धर्म रोॅ वास्तें युद्ध करै लेॅ पड़तै, तत्पर छियै ।

परशुराम आग बबूला होय गेलै, चेला लड़ै लेॅ तैयार छियै
भीष्म युद्ध लेली शस्त्रास्त्रा सेॅ सुसज्जित होय केॅ ऐलै ।

कुरुक्षेत्रा रोॅ मैदान में गुरु सेॅ लड़ै लेॅ ऐलै
हौ समय मेॅ भीष्म रोॅ माता गंगा प्रकट होलै ।

आरोॅ कहलकै बेटा ! है भूल कहिनें करलौ
गंगा, परशुराम केरोॅ पास जाय केॅ प्रार्थना करलकै ।

हुनका मनैलकै, युद्ध नै करै लेॅ कहलकै
भीष्म नेॅ माता केॅ हाथ जोड़ी केॅ सब बात कहलकै ।

परशुराम केरोॅ आज्ञा केॅ अनुचित बतैलकै
गंगा रोॅ बात नै मानै लेॅ तैयार होलै ।

अंत मेॅ दोनोॅ युद्ध रोॅ मैदान मेॅ उतरलै
भीष्म नेॅ परशुराम केॅ कहै छै ।

हम्में रथोॅ पर सवार छियै
भगवान आपनें धरा पर छियै ।

है युद्ध अनुचित होय छै
भीष्म पसोपेश में पड़ी जाय छै ।

भगवान आपनें कवच धारण करियै
रथ पर सवार होय केॅ युद्ध करियै ।

परशुराम कहै छै, भीष्म ! पृथ्वी हमरोॅ रथ छेकै
चारोॅ वेद हमरोॅ घोड़ा छेकै, वायु हमरोॅ सारथी छेकै ।

गायत्राी हमरोॅ कवच छेकै
हम्में सुरखित होय केॅ लड़ै लेॅ तैयार छियै ।

आबेॅ हम्में बाणोॅ रोॅ वर्षा करै छियै
परशुराम कल्पित दिव्य रथोॅ पर बैठलोॅ छेलै ।

रथेॅ मेॅ दिव्य घोड़ा जुटलोॅ छेलै
शास्तास्रोॅ सेॅ सुसज्जित कवच पहिनने छेलै ।

भीष्म आपनोॅ धनुष बाण नीचे राखनें छेलै
नंगे पाँव पैदल चली केॅ प्रणाम करलकै ।

गुरुदेव ! आपनें रोॅ साथ युद्ध करै रोॅ आदेश दै लेॅ कहलकै
गुरुदेव ! आपने विजय रोॅ आर्शीवाद देवै ।

आपना केॅ युद्धोॅ मेॅ जय आर्शीवाद नै देवै
शंख बजैलकै, शस्त्रा प्रहार दोनोॅ तरफोॅ सें होलै ।

भीष्म कहलकै आपनें रोॅ बाणोॅ सेॅ घोड़ा बेहोश होलै
हमरा पर कोय प्रभाव नै पड़ै वाला छै ।

आपनें गुरु मर्यादा छोड़ी देनें छियै
हम्में आपनें रोॅ वेद, ब्रह्मतेज तपस्या रोॅ प्रहार नै करै छियै ।

शस्त्रा धारण सेॅ ब्राह्मण क्षत्रिय होय छै यही सेॅ प्रहार करै छियै
आपनें हमरोॅ धनुष रोॅ प्रभाव बाहु देखियै ।

एक बाण चलैलकै गुरु रोॅ धनुष रोॅ डोरी काटी देलकै
तेईस दिनोॅ तक दोनोॅ में युद्ध होतै रहलै ।

शौच, स्नान, संध्या, नित्य कर्म सेॅ निवृत्त होय डटलोॅ रहलै
संध्या समय जबेॅ आभी जाय छेलै ।

होकरोॅ पहिनें दोनोॅ लड़तें रही छेलै
भीष्म नेॅ एक रात देवता सेॅ प्रार्थना करी केॅ नींद लेलकै ।

संकल्प लै केॅ परशुराम केॅ हराय लेॅ चाहलकै
रातोॅ मेॅ आठोॅ वसुओॅ नेॅ ब्रह्मरूपोॅ मेॅ भीष्म केॅ दर्शन देलकै ।

पूर्व जन्म रोॅ प्रस्ताप अस्त्रा रोॅ ज्ञान स्मरण करलकै
तोरा पास जबेॅ हौ आभी जैतै तबेॅ सक्षम होभोॅ ।

तबेॅ परशुरामोॅ सेॅ जीत हासिल करभोॅ
होकरोॅ प्रयोग करला पर परशुराम युद्ध में सुती जैतै ।

ऐना कैन प्रकारे समर क्षेत्रोॅ मेॅ तोरोॅ जीत होय जैतै
सम्बोधन अस्त्रा रोॅ प्रयोग करला पर हौ जागी जैतै ।

तोरोॅ जीत आरोॅ परशुराम रोॅ मृत्यु होय जैतै
दोसरोॅ दिन गुरु नेॅ ब्रह्मास्त्रा रोॅ प्रयोग करलकै ।

भीष्म नेॅ शांत करै लेली ब्रह्मास्त्रा रोॅ व्यवहार करलकै
चारोॅ ओर हाहाकार मची गेलै ।

त्राही-त्राही रोॅ आवाजें गूंजै लागलै
भीष्म नेॅ प्रस्ताप अस्त्रा छोड़ै रोॅ विचार करलकै ।

आकाशवाणी होलै, प्रस्वाप अस्त्रा छोड़ै लेॅ मना करलकै
प्रस्वाप अस्त्रा रोॅ प्रयोग करै लेॅ चाही रहलोॅ छेलै ।

नारद नें रोकलकै, आठोॅ वसुओॅ नें अनुमोदन करनें छेलै
भीष्म मानी गेलै प्रस्वाप अस्त्रा नै प्रयोग करलकै ।

परशुरामोॅ रोॅ मुँहोॅ सें अचानक निकललै, भीम जीती लेलकै
परशुराम रोॅ पितामह युद्ध भूमि मेॅ प्रकट होलोॅ छेलै ।

हिनका युद्ध करै सेॅ मना करै लेॅ प्रकट होलोॅ छेलै
पितरोॅ देवता, ऋषि रोॅ बीच-बचाव सेॅ युद्ध बंद होलै ।

भीम ! परशुराम केरोॅ चरण छूवी केॅ प्रणाम करनें छेलै
हौ समय परशुराम प्रसन्नता पूर्वक कहलकै ।

पृथ्वी पर अद्वितीय क्षत्रिय केॅ संबोधन करलकै
है युद्ध मेॅ तोहें हमरा जीती केॅ दम लेल्हेॅ ।

तोहें हमरोॅ श्रेष्ठ शिष्य बनी गेल्होॅ
शक्ति भर शिष्य सें युद्ध करलकै ।

चेला केॅ हरावै नै पारलकै
परशुराम नेॅ अम्बा सेॅ आन्तरिक बात कहलकै ।

भीष्म रोॅ ताकत रोॅ पुरजोर वर्ण करलकै
हिनका सेॅ हमरा बल पौरुष अधिक नै छै ।

अम्बा बोललै, आपनें रोॅ कथन सत्य छै
भीष्म केॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ देवता नै जीतै पारै छै ।

हो गंगा रोॅ वसु बलिष्ठ पुत्रा छै
अम्बा तपस्या करै लेॅ चली देलकै ।

शक्ति प्राप्त करे रोॅ उपाय सोचलकै
भीष्म ! विचित्रा वीर्य वास्तें जद्दोजहद करी रहलोॅ छेलै ।

दोसरोॅ तरफ विचित्रावीर्य भोग-विलासोॅ मेॅ लिप्त छेलै
समूचे पृथ्वी पर साम्राज्य भीष्म जैसनोॅ रक्षक छेलै ।

तरुण अवस्था पावी केॅ दोनोॅ सुन्दरी में भूललोॅ छेलै
भोग-विलास मेॅ पड़ी केॅ भगवानोॅ केॅ भूली गेलोॅ छेलै ।

मौत हुनका सिरोॅ पर मंडराय रहलोॅ छेलै
परमार्थ रोॅ उपेक्षा करी केॅ भोग-विलास मेॅ पड़लोॅ छेलै ।

ऐश-मौज रोॅ चलते क्षय रागोॅ रोॅ ग्रसित होय गेलोॅ छेलै
जै वस्तु सेॅ हमरा सुख मिलै छै ।

बादोॅ मेॅ होकरा सेॅ दुख पावै छै
परमात्मा रोॅ आश्रय लेलोॅ जाय, कुछु दुःख होय छै ।

बादोॅ मेॅ सुख ही सुख रोॅ अनुभूति होय छै
विचित्रावीर्य दिने-दिन रोगोॅ सेॅ ग्रसित होय गेलै ।

होकरोॅ शक्ति रोॅ ह्रास होलोॅ गेलै
बड़ोॅ-बड़ोॅ वैद्य केॅ रोगोॅ सेॅ चंगा होय जाय ।

धन खर्च करी केॅ बहुमूल्य औषधि देलोॅ जाय
एक दिन विचित्रावीर्य संसार सेॅ विदा होय गेलै ।

राज्य स्त्राी साथ नै देलकै, तन पंचभूतोॅ मेॅ मिली गेलै
भीष्म नें पिता वास्तें आपनोॅ प्रतिज्ञा निभैलकै ।

दास राजा नेॅ शान्तनु सेॅ वंश राजोॅ रोॅ बड़ोॅ-बड़ोॅ मनसूबा बांधनें छेलै
भीष्म नेॅ प्रतिज्ञा करनें छेलै, राज्य नै चाहनें छेलै ।

सत्यवती रोॅ वंश डूबै लागलै
सत्यवती शोकाग्रस्त होय गेलै ।

भरतवंश लोप होय जैतै, भीष्म चिंतित होलै
विधि-विधान सेॅ विचित्रावीर्य रोॅ अन्त्येष्टि करनें छेलै ।