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पद-1 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
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हमरा आपनोॅ शरणियाँ गुरू राखी लिहोॅ ।
जेना राखभोॅ, वोन्हैं रहभै, भक्ति-भाव आरू सेवा करवै
रोज पैवै तोर दर्शनियाँ, राखी लीहोॅ ।
जनम-जनम सें भटकत रहलौं, पइलौं दुख अपार
अबकी बेरिया तोरोॅ कृपा भेलै, अइलौं तोर शरणियाँ राखी लिहोॅ ।
एक्के विनती हमरोॅ प्रभुजी राखोॅ आपनोॅ वचनियाँ, राखी लिहोॅ ।