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गीत-2 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'

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आजु के दिनमां, आजु के रतिया
सुहावन लागै हो भैया
सुहावन लागै हो भैया कि
मनभावन लागै हो भैया ।

यही दिनमां ब्रजनन्दन जन्मै
मंगल गावै छै अँगनमा
दादा-दादी उन्मत्त होय केॅ
नाचै छै रे भवनमां ।

सहेॅ दिनमां आय अयलोॅ छै
सगरो हकारोॅ देनें छै
सब्भे प्रेमी जुटी केॅ अयलै
हरि गुण गावै छै भजनमा ।

ब्रजनन्दन केॅ आशीष दै छै
युग-युग जीयोॅ हो ललनमां
माय-बाप आरो गुरूजन के भी
करिहौ नाम रौशनमां ।