Last modified on 28 फ़रवरी 2008, at 00:29

हम पात्र हैं किसी के / केदारनाथ अग्रवाल

अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 00:29, 28 फ़रवरी 2008 का अवतरण (New page: {{KKGlobal}} {{KKRachna |रचनाकार=केदारनाथ अग्रवाल |संग्रह=फूल नहीं रंग बोलते हैं / केदा...)

(अंतर) ← पुराना अवतरण | वर्तमान अवतरण (अंतर) | नया अवतरण → (अंतर)

हम पात्र हैं किसी के

रख दिए गए यहाँ--

ख़ाली,

कभी कुछ भरने के लिए;

कभी कुछ उँड़ेलने के लिए;

इच्छा के विरुद्ध बने

और बन कर रखे रहने के लिए

न कुछ कहने के लिए :

न कुछ सुनने के लिए :

केवल काल के हाथ से टूट कर

बिखरने के लिए ।