गीत-3 / रामधारी सिंह 'काव्यतीर्थ'
चलोॅ सखि मिली-जुली
बाल विकास विद्यालय हे
वहाँ जाय केॅ हमरासिनी
तुलसी-जयन्ती मनैवै हे ।
तुलसी केरोॅ जनम भेलै
हुलसीं देलकै छोड़ी हे
आत्माराम के हृदय पत्थर भेलै
वोहूँ देलकै त्यागी हे
आबेॅ तेॅ तुलसी टूअर भेलै
केना केॅ जिनगी बचैते हे ।
चुनिया दासी केॅ दया लागलै
पाली-पोसी देलकै हे
वाहो आबेॅ मरी गेलै
तुलसी दर-दर भटकै हे
पार्वती के कृपा भेलै
भोजन-पानी भेजै हे ।
शंकरजी पसीजी गेलै
बाबा नरहरि पैलकै हे
पढ़ाय-लिखाय केॅ विद्वान बनेलकै
तुलसी विषयी बनलै हे
रतनावली मायके गेलै
तुलसी पिछुवैनें गेलै हे ।
हाड़-माँस के ऐसनोॅ प्रेमी
दौड़लोॅ-दौड़लोॅ अइलै हे
एतना प्रेम जों रामोॅ सें हुएॅ
भवसागर तरो जावै हे
उलटे पाँव तुलसी भागलै
प्रयाग शहर में अइलै हे
गृहस्थ-वेष परित्याग करि केॅ
साधु-वेष धरलकै हे ।
हनुमान के सहयोगोॅ सें
राम-लखन तेॅ भेटलै हे
शिवजी के आदेश भेलै
तोंय अवधी में रचना करोॅ जी
संवत सोलह सौ एकतीस में
रचना आरम्भ भेलै जी ।
रचना पूरा होय गेला पर
तुलसी काशी अयलै जी
‘मानस’ मन्दिर में रखला पर
होलै ‘सत्यं शिवं सुन्दरम्’ हे
‘मानस’ भेलै महाकाव्य
आरू भेलै तुलसी के प्रसिद्धि हे ।
समन्वय केरोॅ विराट चेष्टा
लोकनायक भेलै तुलसी हे
युग-प्रवर्तक, दृष्टा कहलैलै
सन्त-भक्त आरू स्रष्टा हे
एतना भेले तेॅ की होलै
होले मर्यादावादी हे ।