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हम पात्र हैं किसी के / केदारनाथ अग्रवाल

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हम पात्र हैं किसी के

रख दिए गए यहाँ--

ख़ाली,

कभी कुछ भरने के लिए;

कभी कुछ उँड़ेलने के लिए;

इच्छा के विरुद्ध बने

और बन कर रखे रहने के लिए

न कुछ कहने के लिए :

न कुछ सुनने के लिए :

केवल काल के हाथ से टूट कर

बिखरने के लिए ।