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आवरण के भीतर... / केदारनाथ अग्रवाल

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आवरण के भीतर है एक आवरण और

भीतर के भीतर है एक आवरण और

भीतर के भीतर के भीतर है

एक आवरण और

निर्विकार निरावरण दर्पण का,

जिसमें सब कूदते समाए चले जाते हैं ।