भारत की संस्कृति के लिए... भाषा की उन्नति के लिए... साहित्य के प्रसार के लिए
हम देहाती मनई / प्रदीप शुक्ल
Kavita Kosh से
अनिल जनविजय (चर्चा | योगदान) द्वारा परिवर्तित 07:05, 14 जून 2016 का अवतरण
हम पर एतना ना खउख्याव
हम देहाती मनई
हमरे घाव तनिकु सोहराव
हम देहाती मनई
हम दुपहरि मा
खेतु निकाई
पैंतालिस है पारा
मुलुर मुलुर खिरकी ते तुम तो
झाँकि रहेव फव्वारा
मन मा स्वान्चौ सत्तरि दाँव
हम देहाती मनई
तोरई कै
बंउड़ी अस हमरी
रोजु गरीबी बाढ़ै
महँगाई सूरज के जईसन
हम पर आँखी काढ़ै
तुमतो बस बईठे मुसक्याव
हम देहाती मनई
कुईंया सूखीं
ताल सूखिगे
सूखे सबके दीदा
तुमका तो चुनाव का खाली
गणित लगै पेचीदा
हियाँ पियासा पूरा गाँव
हम देहाती मनई